बुधवार, 31 जुलाई 2013

क्यों कैसी हो?
तुम्हे क्या पता
भीतर क्या हैं पिघलता
पुछकर तुमने
ओह! क्या किया
ढुलक गए दो शबनम
हो गयी आँखे नम
लेकिन तुम बताओ

क्यों, कैसे हो

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013




तुम्हारा ना होना
तुम्हारा होना ज्यादा है
सुबूत तुम्हारे होने का
तुम्हारे ना होने में ज्यादा है
अदृश्य सा साथ
मेरे साए में लिपटा सा है
सुबह-शाम हो जाता है जो
मुझमें ही मेरे कद से बड़ा
दोपहर की सुनसान में
जज्ब होने लगता है
मुझमें मेरे बराबर होकर
और ..........
सब हटाकर, झटककर
रातों को वो जो नहीं है
सो जाता है, मुझमें ही आकर !

सोमवार, 25 मार्च 2013

सौ दुश्वारियां हैं तेरे ख्यालों की!

          (1)
सुनो.....क्या तुम सुन सकते हो?
मैं चाहती हूँ तुम सुनो मुझे
पता नहीं कब-कब,
क्या-क्या कहते रहे तुम
चलते रहे हम, बढ़ते रहे तुम 
थम सी गयी मैं पर.... 
बड़ी होती गयी मुझमें स्त्री
उफ़! पत्थर सा कठोर है सब आस-पास
फिर भी बचा ही लेती हूँ थोड़ी कोमलता
तुम इतना भी नहीं कर सकते ?

      (2)
हिमालय सा ऊँचा हो
तो भी क्या 
टूटना पत्थरों की नियति है!

      (3)
कुछ अन्धेरें उजालों से ज्यादा रोशन होते हैं,
ये वो अन्धेरें हैं, 
जब पता होता है,
एक-दुसरे को देख नहीं सकते
लेकिन यकीन बना रहता है,
एक-दुसरे को देखते रहने का,
उजालें तो सबके पास होते हैं,
ऐसे अन्धेरें सब सहेजते नहीं !

    (4)
बैठी रही सारा दिन, वैसे ही,
जबकि करने को बहुत कुछ था 
यूँ ही हो गयी दोपहर, फिर हुई शाम,
मैं गयी वहां, जहाँ जाने का कोई अर्थ न था
रही खड़ी वहां , जहाँ खड़ा रहना, 
अक्सर व्यर्थ होता है
सुना लोगों की बातों को 
जिनका कोई मतलब न था !

   (5)
शब्द छु जाते हैं, 
चोट करते हैं,
रुला देते हैं 
फिर नरमी से,
सहला देते है, 
गुदगुदा देते हैं पर..
सबसे ताकतवर होते हैं,
जब भरोसा देते हैं !

  (6)
महत्वकांक्षाएं मेरी सिकंदर सी,
निस्पृहता मुझमें बुद्ध सी
या तो सबकुछ मुझे चाहिए
या फिर
कुछ भी नहीं!

  (7)
दो मुझे सिर्फ अनुराग
ना तो अतृप्त कामना
और ना ही आवारा बैराग
मैं स्वीकारूं बिल्कुल 'अपने' की तरह
दो ऐसी पीड़ा
करो प्यार ऐसे, मिले दुःख मुझे!

  (8)
सौ दुश्वारियां हैं तेरे ख्यालों की ...
रहतें ढूंढती हूँ औरों के फसानों में !

  (9)
बहुत लिखा तुमने, 
यहाँ की वहां की
बस नहीं लिखा तो....
सरगोशियाँ अपने करीब की !

(10)
पुराने कैलेंडर सहेज कर,
रखने की बुरी आदत है मेरी,
सहेज लिया तुम्हें भी,
ओ पुराने वक़्त
जो गुज़रे हो अभी-अभी

(11)

आना जाना लहरों का,
कि‍नारे न जाने मैं कि‍स सोच में,
तहों में कुछ दब सा रहा है
कहीं....................
सहेज कर रखना कि‍श्‍तों में,
मेरा, तुम्‍हें बार बार
जि‍न्‍दगी मतलब तुम्‍हारा
गीले गीले से एहसास
बार बार।

(12)
अनुभवों के अनेकों संस्तरो के बीच 
कभी देखा हैं 
कहाँ हैं, कैसा हैं
हमारा असली मन ?

सोमवार, 9 जुलाई 2012

मुझे छूने से 
मेरे अंधेरों को भी 
छु लिया तुमने?

मैं, मैं ही तो  हूँ  
तुम, तुम ही रहे 
अपने दायरों में!

जान कर भी 
बनते रहे अनजान 
रास्तों, गलियों में 

बेशक मिलते हो तुम
तनहाइयों में
एक अलग ही चेहरा लिए!





शनिवार, 7 जुलाई 2012

एक क्षण चाहा कि--
यूँ होता तो क्या होता
नहीं कुछ नहीं होता,
नहीं होने पर 
फिर सोच जो लिया 
नहीं होता यूँ 
तो भी कुछ नहीं होता 
सबकुछ पहले सा चलता ही रहता !

एक चाह के बनने से
बनकर फिर मिटने से
कहाँ कुछ फर्क पड़ता है 
आखिर ये चीज़ ही क्या है?
एक क्षण का सच?
एक अवधि का सच?
या, एक उम्र का सच?
उस क्षण, अवधि या उम्र के बाद हो कि न हो!  

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

9 दिसम्बर


कभी, बोल कर भी कुछ नहीं बोलती
और कभी,
ना बोल कर भी सब बोल देती हो 
कहती हो तुम प्यार अपना
ना जाने कैसे-कैसे
और............
अनसुना करने सा दीखता हुआ
सुनता हूँ मैं 
तुम्हें अपने रोम-रोम से 
कैसे बताऊँ 
तुम्हारे ज़िक्र से ही 
भर-भर आता हूँ मैं ! 

रविवार, 13 नवंबर 2011

14 नवम्बर !

सुनो तुम केवल बौद्धिक जुगालियां करती रहती हो, दुसरे शब्दों में बस चले तो बौद्धिकता  ही  ओढती, बिछाती,पहनती हो, वो बौद्धिकता जो किताब पढ़-पढ़ कर अर्जित की जाती है! इससे ये हुआ कि तुमने अपने  पंख (मन के ) अनंत तक फैला लिए हैं, प्रायः ब्रह्माण्ड (धरती ही नहीं ब्रह्माण्ड ) के चक्कर लगाती हो, नक्षत्रों में पता नहीं क्या खोजती रहती हो, सड़क पर आकाश में देखती चलती हो ( कहीं स्वाति के बूँद कि प्रतीक्षा तो नहीं ?) कैसे समझाउं तुम्हें? धरती के छोड़ो को नापना यायावरी हो सकती है, अकलमंदी नहीं!  आशय ये कि थोड़ी-थोड़ी पागल हो! इस पागलपन कि ख़ास बात ये है कि तुम ये सब जानबूझकर करती हो! तुम विद्रोह की  ज्वाला में सुलगती रहती हो,तुम्हारा अपना अस्तित्व भी तो इसकी ताप महसूस करता होगा? हालांकि तुम नदी के सामान प्रवाहित होना चाहती हो, किन्तु कभी-कभी इतनी धाराओं में बिभक्त होने लगती हो कि उलझ सी जाती हो, वैसे डेल्टा बनना भी अच्छी बात है!  याद रखना दुनिया बहुत कठोर है अपने लिए उसे कोमल तुम्हें ही बनाना होगा  !