कभी, बोल कर भी कुछ नहीं बोलती
और कभी,
ना बोल कर भी सब बोल देती हो
कहती हो तुम प्यार अपना
ना जाने कैसे-कैसे
और............
अनसुना करने सा दीखता हुआ
और............
अनसुना करने सा दीखता हुआ
सुनता हूँ मैं
तुम्हें अपने रोम-रोम से
कैसे बताऊँ
तुम्हारे ज़िक्र से ही
भर-भर आता हूँ मैं !