गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

9 दिसम्बर


कभी, बोल कर भी कुछ नहीं बोलती
और कभी,
ना बोल कर भी सब बोल देती हो 
कहती हो तुम प्यार अपना
ना जाने कैसे-कैसे
और............
अनसुना करने सा दीखता हुआ
सुनता हूँ मैं 
तुम्हें अपने रोम-रोम से 
कैसे बताऊँ 
तुम्हारे ज़िक्र से ही 
भर-भर आता हूँ मैं !