मुझे छूने से
मेरे अंधेरों को भी
छु लिया तुमने?
मैं, मैं ही तो हूँ
तुम, तुम ही रहे
अपने दायरों में!
जान कर भी
बनते रहे अनजान
रास्तों, गलियों में
बेशक मिलते हो तुम
तनहाइयों में
एक अलग ही चेहरा लिए!
ये कोना मेरे लिए, मुझसे कहता है---- ..जो कहीं नहीं कहा कह दो, मेरे दिल पर अपने दिल की छाप दो!