सोमवार, 9 जुलाई 2012

मुझे छूने से 
मेरे अंधेरों को भी 
छु लिया तुमने?

मैं, मैं ही तो  हूँ  
तुम, तुम ही रहे 
अपने दायरों में!

जान कर भी 
बनते रहे अनजान 
रास्तों, गलियों में 

बेशक मिलते हो तुम
तनहाइयों में
एक अलग ही चेहरा लिए!





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