एक क्षण चाहा कि--
यूँ होता तो क्या होता
यूँ होता तो क्या होता
नहीं कुछ नहीं होता,
नहीं होने पर
फिर सोच जो लिया
नहीं होता यूँ
तो भी कुछ नहीं होता
सबकुछ पहले सा चलता ही रहता !
एक चाह के बनने से,
बनकर फिर मिटने से
कहाँ कुछ फर्क पड़ता है
आखिर ये चीज़ ही क्या है?
एक क्षण का सच?
एक अवधि का सच?
या, एक उम्र का सच?
उस क्षण, अवधि या उम्र के बाद हो कि न हो!
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